परंपरा या विवशता जहाँ सावन के महीने में औरतों को रहना पड़ता है निवस्त्र
(Bina kapdo ke rahte hai yha log)दुनिया में हर जगह के अलग अलग रिवाज होते है अलग अलग परम्पराये होती है और भारत तो ऐसा देश है जहाँ परम्पराये कूट कूट कर भरी हुई है कुछ परम्पराये कहे या रीती रिवाज वो तो सामान्य होते है जिन्हे निभाने में किसी को कोई परेशानी नहीं होती है पर कई जगह ऐसे रीति रिवाजो को फॉलो किया जाता है जो बहुत ज्यादा अजीब होते है और इन्हे निभाना भी बहुत ही ज्यादा मुश्किल होता है और बहुत से लोग तो इन्हे मजबूरी में निभाते है.
अब हिमाचल प्रदेश के मणिकर्ण घाटी के पीणी गांव को ही ले लीजिए जहाँ साल के पांच दिन वहाँ की औरतो को अपने पारम्परिक वस्त्रो का त्याग करना पड़ता है और ना के के बराबर कपड़े पहनने पड़ते है और उनमे कुछ औरते तो नहीं भी पहनती है और पांच दिन तक लगातार इसका पालन करना पड़ता है वो वक़्त होता है साल में एक बार यानि की सावन के महीने में 17 अगस्त से 21अगस्त तक ये परम्परा चलती है जब 5 दिनों तक औरतो को कपड़े पहनने पर पाबंदी होती है और अगर पहनन लेते है तो कहा जाता है उनके साथ कुछ अशुभ होता है इस बीच पति पत्नी को एक दूसरे से बात भी नहीं करने दी जाती है इन पांच दिनों में गांव का कोई भी आदमी शराब भी नहीं पी सकता है ये ऐसी परम्परा है जो सदियों से चली आ रही है और लोग आज भी इससे पूरी शिद्दत से मानते है.
इस परम्परा के पीछे क्या कारण है
कहा जाता है की सालो पहले लाहुआ घोड़ देवता पीनी गांव में आये थे उस वक़्त सावन का महीना था और राक्षसों ने गांव में बुरी तरह आंतक मचा रखा था लेकिन जैसे ही लाहुआ देवता वहाँ आये राक्षसों का विनाश हो गया था तब से लोग इस परम्परा को निभा रहे है कहा जाता है की औरतो के सुंदरता के कारण ही वहाँ राक्षस हमला करते थे और जो औरते वहाँ सुंदर कपड़े पहन के रहती थी राक्षस उन्हें उठा ले जाते थे तो तब से यही मान्यता है की उन 5 दिनों में आज भी राक्षस आते है और औरतो के साथ कपड़ो की वजह से अपसगुन होता है तो उन 5 दिन औरते कपड़ो का त्याग करती है लेकिन समय के साथ आज वहाँ कुछ औरते इस रिवाज को निभाती तो है पर वो कुछ पतले कपड़े पहनन लेती है और कुछ औरते पांच दिन कपड़े बदलती नहीं है तो कुछ ऊन का पट्टू ओढ़कर रहती है तो कुछ अपसगुन से डरते हुए कपड़े पहनती ही नहीं है.